2009 से अब तक यह चौथा मौका है, जब चीन मसूद अजहर की ढाल बना है-चन्द्रपाल प्रजापति
नोएडा ।आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को लेकर चीन ने एक बार फिर अपना असली चेहरा दिखा दिया है। चीन ने अड़ंगा लगाकर जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित होने से बचा लिया है। संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर चीन ने वीटो लगा कर इसे रोक दिया है। वीटो लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूं’।
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प्राचीन रोम में कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती थी। वे इन शक्ति का इस्तेमाल करके रोम सरकार की किसी भी कार्रवाई को रोक सकते थे। तब से यह शब्द किसी चीज को करने से रोकने की शक्ति के लिए इस्तेमाल होने लगा। मौजूदा समय में यूएन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस,रूस, यूके और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। यही मसूद के मामले में हुआ। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे ग्लोबल आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने अड़ंगा लगा दिया। 2009 से अब तक यह चौथा मौका है, जब चीन मसूद अजहर की ढाल बना है।
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अपने देश में नमाज और दाढ़ी तक पर रोक लगाकर इसलाम की नई परिभाषा तैयार कर रहे चीन को मसूद अजहर से इतना प्रेम क्यों है? इस सवाल का जवाब यही है कि चीन एक दोगला और साम्राज्यवादी देश है। वह अपने हितों के लिए दुनिया की शांति की भी बलि चढ़ा सकता है। चीन के पाकिस्तान में आर्थिक हित हैं, जिन्हें मसूद अजहर से खतरा है। चीन मसूद अजहर को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि चीन को अगर मसूद अजहर से डर लगता है, तो आर्थिक हितों के मामले में उसे भारत से क्यूं नहीं डरना चाहिए? इसके लिए आपको चीन के आर्थिक हित और पाकिस्तान पोषित आतंकवाद की केमिस्ट्री को समझना होगा।
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ये चीन और इस्लामिक दहशतगर्दों की आपसी समझबूझ है। तुम हमें मत छेड़ो, हम तुम्हें नहीं छेड़ेंगे। चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) चीन की एक महत्वपूर्ण सामरिक एवं आर्थिक योजना है। इस परियोजना के जरिये चीन पाकिस्तान से होते हुए सीधे ग्वादर बंदरगाह तक पहुंच रहा है। पूरा प्रोजेक्ट जिस इलाके में है, वह वहाबी आतंकवाद का गढ़ है। इन इलाकों में आतंकवादी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं। सीपीईसी के इर्द-गिर्द जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों की मजबूत पकड़ है। यह एक तरह का अलिखित समझौता है।
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चीन मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरगनाओं को बचाएगा। बदले में ये आतंकवादी चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट में कोई खलल नहीं डालेंगे। पुलवामा हमले के बाद भारत समेत पूरे विश्व के लोगों में आतंक के खिलाफ काफी गुस्सा है। इधर चीन की इस चाल के बाद भारत के लोग काफी मुखर होकर चीन का विरोध करने पर उतर आए हैं। अमेरिका और यूरोपीय देश अब समझ रहे हैं कि चीन पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों को भविष्य के हथियार के रूप में तैयार कर रहा है। पुलवामा हमले के बाद यूरोपीय देश और अमेरिका जिस तरीके से खुलकर जैश और मसूद के खिलाफ सामने आए हैं, वह चीन की नीयत और नीति का ही नतीजा है।
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इधर चीन की इस चाल के बाद भारत के लोग काफी मुखर होकर चीन का विरोध करने पर उतर आए हैं। ट्विटर और फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर चीन के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा देखा जा सकता है। और यह गुस्सा यहीं नहीं होना चाहिए। सभी को चीनी सामान का बहिष्कार कर चीन को आर्थिक रूप से तोडना होगा। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति और पुलवामा में हुए शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

