माँ बिना मरुथल सा मनवा, महके न मीत मधुराई,
माँ ममता की मधुर मूरत, मृदु यादें मुस्काई।
माँ मृदुलता की मणिमाला, मोती-सी मुस्कान,
माँ ममता की मधुर माया, मन के भीतर गान।
माँ के बिना मिटे न पीड़ा, मिट्टी सी जिंदगी कोरी,
माँ की ममता ममता में, मृदंग बजे लोरी।
माँ मुस्काए तो मिट जाए, मन के दुख-दलदल,
माँ ममतामयी मृदु बोली, मोहे हर पागल।
माँ मृदुल लहर लोरी बनकर, मन मंदिर में गूंजे,
माँ ममता की मणि-सी महकी, मधु-बूँदें बरसूंजे।
माँ के आँचल में मिट जाए, मरुस्थल की प्यास,
माँ ममता का मधुर संगीत, मृदु सुधियों की सुवास।
माँ ममता की मंगल छाया, मूक मनवा बोले,
माँ बिन मरके भी जीना, सूनी सुधियों में डोले।
माँ ममता की मधुर रागिनी, मन को मोहे मोरी,
दुनिया का सबसे सुंदर संगीत, माँ की मीठी लोरी।
माँ ममता की मृदुल रागिनी, मन में मृदु सुख बोरी,
दुनिया का सबसे सुंदर संगीत, माँ की मधुर लोरी।
✍🏻 गुरुदास प्रजापति ‘राज़’
आचार्य गुरुदास प्रजापति ‘राज़’ — साहित्य, अध्यात्म और समाजसेवा की त्रयी में साधना का उज्ज्वल आलोक
कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो अपने विचारों और कर्मों से केवल एक जीवन नहीं जीते, बल्कि अनगिनत अंतःकरणों को आलोकित कर जाते हैं। उनकी साधना, करुणा और संवेदना की आभा समाज को निरंतर जागृत और प्रेरित करती है। आचार्य गुरुदास प्रजापति ‘राज़’ इसी परंपरा के सजीव प्रतीक हैं।
आपका जन्म भारत की पुण्यभूमि पर 1992 में हुआ। बचपन से ही आपके अंतर्मन में करुणा, सेवा और आध्यात्मिक संस्कारों के बीज अंकुरित हुए। परिवार से मिले उच्च आदर्शों और सत्प्रेरणाओं ने आपके ह्रदय में एक ऐसी साधना का दीप जलाया, जिसने आपके समस्त जीवन को कर्म, ज्ञान और सृजन की तपोभूमि बना दिया।
आपकी शिक्षा में भी एक अनुकरणीय उत्कर्ष देखा जाता है। हिंदी और संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधियाँ प्राप्त कर आपने साहित्य की गहराई में प्रवेश किया। यूजीसी-नेट परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने शिक्षण और शोध में श्रेष्ठता अर्जित की, और बी.एड. की विधिवत शिक्षा प्राप्त कर अपनी प्रतिभा को नवपंथ की ओर अग्रसर किया।
साहित्य के क्षेत्र में आपकी उपलब्धियाँ किसी एक विधा तक सीमित नहीं रहीं। आपकी कविताओं में वेदना, करुणा, विद्रोह और अध्यात्म की अद्भुत समन्विति दिखाई देती है। राम विमुख जो कोऊ होई, हमरे हउसला के तनिका तूं डिगाई के त देखा, शीत की रात, शक्ति स्वरूपा मां, कन्या है साक्षात देवी, मुझे भूलना नहीं आसां जैसी कृतियाँ मानवीय अनुभव की व्यापक धरती पर अंकित कालजयी रचनाएँ हैं।
आपकी कुछ पंक्तियाँ आज भी लोगों के ह्रदय में अद्भुत शक्ति का संचार करती हैं—
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“मुझे भूख दो मत, मुझे पीड़ा दो मत,
मेरे मन की मिट्टी को गीला न करो।
मैं स्वयं अपना दीप जलाने चला हूं,
तुम्हारे आलोक का याचक नहीं हूं।”
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“कन्या नहीं, वह शक्ति की मूर्ति है,
नारी नहीं, वह करुणा की धारा है।
जो उसके आँचल से प्रेम न करे,
उसका जीवन अधूरा और पथराया है।”
गद्य लेखन में भी आपकी दृष्टि व्यापक और दूरदर्शी रही है। समता और समरसता, सामाजिक समस्या में संत रविदास जी की दृष्टि, संस्कृति और सामाजिकता में दलित अस्मिता, बीसवीं सदी की दलित कविता, राष्ट्र प्रेम और अटल बिहारी वाजपेई की कविता जैसे आपके निबंध आधुनिक समाज को चेतना का अमृत पिलाते हैं।
आपका विश्वास है कि—
“साहित्य का चरम उद्देश्य मनुष्य के अंतःकरण की सुप्त संभावनाओं को जागृत करना है।”
आपके महाकाव्य युग प्रवर्तक और गद्यकृति सुखी दांपत्य सृजन की पराकाष्ठा के उदाहरण हैं।
केवल लेखक या चिंतक ही नहीं, आप एक सक्रिय समाजसेवी भी हैं। जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था में आपकी सशक्त भूमिका, सनातनी विश्व गुरु के सह-संचालक और सनातनी वीर के पंच संचालक के रूप में आपका समर्पण, समाज की रचना में अविस्मरणीय है। आपने शाकाहार के प्रचार में अप्रतिम कार्य किया।
आपका यह कथन विशेष प्रेरक है—
“शाकाहार केवल भोजन की शैली नहीं, बल्कि करुणा का सर्वोत्तम साधन है।”
आपकी साधना और कर्मशीलता के लिए आपको काशी साहित्य गौरव सम्मान, अटल साहित्य सम्मान, भारतेंदु सम्मान, सनातन धर्म रक्षक सम्मान, भारत माता अभिनंदन सम्मान, राजभाषा से राष्ट्रभाषा अभिनंदन पत्र सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
आपके जीवन का मूल मंत्र यही है—
“साहित्य, सेवा और साधना—तीनों में समर्पित होना ही मानव जीवन की सच्ची साधना है।”
आज जब भौतिकता और आत्मकेन्द्रित सोच समाज के ताने-बाने को क्षीण कर रही है, आचार्य गुरुदास प्रजापति ‘राज़’ का व्यक्तित्व मानवीय संवेदना का आलोक बनकर जगमगा रहा है। उनका जीवन और उनकी लेखनी हमें यह संदेश देती हैं कि—
“मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है,
करुणा सबसे बड़ा सत्य है,
सृजन सबसे बड़ा दायित्व है।”
निश्चय ही आनेवाले समय में आपके विचार, कृतियाँ और कर्म अनगिनत लोगों को
करुणा, सृजन और साहस का दीप जलाने की प्रेरणा देते रहेंगे।