सोहराबुद्दीन–तुलसी प्रजापति एनकाउंटर प्रकरण निर्णायक मोड़ पर, पाँच दिसम्बर को होगी अंतिम सुनवाई

सोहराबुद्दीन प्रकरण का निर्णायक मोड़! पाँच दिसम्बर को होगी अंतिम सुनवाई, दोषमुक्त आरोपियों को नोटिस जारी

संस्कार न्यूज
मुंबई।

बहुचर्चित सोहराबुद्दीन–तुलसी प्रजापति एनकाउंटर प्रकरण अब अपने सबसे महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर चुका है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा है कि पाँच दिसम्बर को होने वाली अगली सुनवाई ही अंतिम होगी तथा सभी दोषमुक्त आरोपियों की उपस्थिति अनिवार्य रहेगी। न्यायालय की इस टिप्पणी ने वर्षों से लंबित मामले में एक नई गंभीरता जोड़ दी है, जिससे संकेत मिलता है कि इस चर्चित प्रकरण का आगामी अध्याय उसी दिन निर्धारित होगा।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान गहरी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि यह मामला वर्ष दो हजार उन्नीस से लंबित है और चार बार सुनवाई होने के बावजूद कई आरोपी अब तक न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं। खंडपीठ ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को निर्देश जारी किए कि सभी दोषमुक्त आरोपियों को तत्काल नोटिस भेजकर उपस्थित होना सुनिश्चित किया जाए। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाँच दिसम्बर की सुनवाई को अंतिम माना जाएगा और उसी दिन मामले की आगे की दिशा तय होगी।

ट्रायल कोर्ट ने इक्कीस दिसम्बर दो हजार अठारह को मामले में दर्ज सभी बाईस आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो कथित फर्जी मुठभेड़ को साबित नहीं कर सका। छियानवे गवाहों के hostile हो जाने से अभियोजन की पूरी कहानी कमजोर पड़ गई थी। अदालत ने कहा था कि उपलब्ध साक्ष्य उन आरोपों की पुष्टि नहीं करते जिनके आधार पर पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर मुकदमे चलाए गए।

ट्रायल कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन और नयाबुद्दीन ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। उनका कहना था कि ट्रायल कोर्ट ने अनेक महत्वपूर्ण तथ्य और परिस्थितियों पर विचार नहीं किया, जिसके चलते न्यायिक समीक्षा आवश्यक है। इसी अपील के आधार पर अब उच्च न्यायालय पाँच दिसम्बर को अंतिम सुनवाई करेगा।

केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की जांच के अनुसार राजस्थान, गुजरात और आंध्रप्रदेश की पुलिस टीम ने संयुक्त अभियान के दौरान सोहराबुद्दीन को हिरासत में लिया था और बाद में कथित फर्जी मुठभेड़ में उसकी मृत्यु हुई। लगभग एक वर्ष बाद उसके साथी तुलसी प्रजापति की भी मुठभेड़ में मौत हुई, जिसे उसी घटनाक्रम से जुड़ा बताया गया। इस मामले में कुल उन्तीस पुलिसकर्मी और अधिकारी आरोपित थे, जिनमें से सोलह को अपर्याप्त आधार के कारण ट्रायल शुरू होने से पहले ही मुक्त कर दिया गया था।

अभियोजन पक्ष ने दो सौ दस गवाहों को प्रस्तुत किया, लेकिन लगभग आधे यानी छियानवे गवाहों के बयान बदलने से आरोपी पक्ष को लाभ मिला और अभियोजन की कहानी आधारहीन मानी गई। इसी कारण सभी बाईस आरोपियों को दोषमुक्त किया गया।

अब उच्च न्यायालय द्वारा अंतिम सुनवाई की घोषणा के बाद सभी संबंधित पक्षों की नज़रें पाँच दिसम्बर पर टिक गई हैं, जब यह लम्बा चला विवादास्पद प्रकरण अपनी निर्णायक दिशा प्राप्त करेगा।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह कहा कि मामला वर्ष दो हजार उन्नीस से लंबित है। चार बार सुनवाई होने के बाद भी कई आरोपी अब तक न्यायालय के सामने प्रस्तुत नहीं हुए हैं। इसलिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को निर्देश दिया गया है कि सभी दोषमुक्त आरोपियों को नोटिस जारी कर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाँच दिसम्बर की सुनवाई को अंतिम माना जाएगा और उसी दिन मामले का अगला अध्याय तय होगा।

ट्रायल कोर्ट ने इक्कीस दिसम्बर दो हजार अठारह को इस प्रकरण में दर्ज सभी बाईस आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो फर्जी मुठभेड़ की कहानी सिद्ध नहीं कर सकी। अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए अनेक गवाह अपने पूर्व बयान से मुकर गए, जिससे पूरी कहानी की नींव कमजोर पड़ गई। छियानवे महत्वपूर्ण गवाहों के hostile होने के कारण अभियोजन का आधार ही डगमगा गया और पर्याप्त सबूत न होने पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।

ट्रायल कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन और नयाबुद्दीन ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। उन्होंने पुनः परीक्षण की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि ट्रायल कोर्ट ने अनेक बिंदुओं पर उचित विचार नहीं किया। इसी अपील पर उच्च न्यायालय ने अब अंतिम सुनवाई की घोषणा की है।

केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान, गुजरात और आंध्रप्रदेश की पुलिस टीम ने संयुक्त अभियान के दौरान सोहराबुद्दीन को गिरफ्तार किया था। इसके बाद उसे कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया। एक वर्ष बाद उसके साथी तुलसी प्रजापति की भी मुठभेड़ में मृत्यु हुई, जिसे इसी घटनाक्रम से जुड़ा बताया गया था। इस मामले में कुल उन्तीस पुलिसकर्मी और अधिकारी आरोपित किए गए थे। इनमें से सोलह को ट्रायल शुरू होने से पहले ही आरोप सिद्ध करने योग्य आधार न होने के कारण मुक्त कर दिया गया था।

अभियोजन पक्ष ने कुल दो सौ दस गवाह पेश किए थे, परन्तु छियानवे गवाहों के बयान बदलने से कथित कहानी का आधार कमजोर हो गया। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि उपलब्ध साक्ष्य आरोप सिद्ध करने योग्य नहीं हैं। इसी कारण सभी बाईस आरोपियों को दोषमुक्त किया गया।

अब जब उच्च न्यायालय ने पाँच दिसम्बर की सुनवाई को अंतिम घोषित कर दिया है, तो यह स्पष्ट है कि वर्षों से रुका यह बहुचर्चित प्रकरण अब निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुका है। सभी पक्षों की निगाहें अब उसी तारीख पर टिक गई हैं, जब अदालत इस लंबे मामले की दिशा और परिणाम दोनों को निर्धारित करेगी।

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