ये जो चेहरे पे दिखता तिल है तुम्हारा,
बस वही पे अटका दिल है हमारा।
कुछ इस तरह नजर आता है चेहरा तुम्हारा,
जैसे चाँद को लगाया हो किसी ने काला टीका।
ये जो चेहरे पे दिखती मुस्कान है तुम्हारी,
बस वही पे अटकी जान है हमारी।
कुछ इस तरह लगती है बातें तुम्हारी,
जैसे कानों में घोल दी हो शहद की प्याली।
ये जो चेहरे पे दिखती आभा है तुम्हारी,
बस वही पर अटकी नजर है हमारी।
कुछ इस तरह लगती है सादगी तुम्हारी,
जैसे धरती पे उतरी हो अप्सरा प्यारी।
ये जो चेहरे पे चमकती आँखें हैं तुम्हारी,
बस यही पर अटकी साँसें हैं हमारी।
कुछ इस तरह आँखों में डूब जाती है शाम हमारी,
जैसे पपीहा को पहली बूँद का पानी।
ये जो चेहरे से झलकती सीरत है तुम्हारी,
बस वहीं पे ठहर गया ये बाल ब्रह्मचारी।
कुछ इस तरह सँभालती हो जज़्बात हमारे,
जैसे बरसों से बिछड़े को मिल गए हो सहारे।
तुम्हे जो मैंने देखा,
तो मोहब्बत को नया मतलब मिला,
हर अधूरा ख्वाब भी पूरा सा लगा।
लेखक अंकुर सिंह ग्राम चौकठा पोस्ट भारतनगर जिला प्रयागराज के निवासी है इन्होने हाल ही में अपनी मास्टर बॉटनी से पूरी की है। इन्हे लिखने का शौक बचपन से ही रहा है और ये अक्सर हॉरर और फांतासी कहानियाँ पढ़ना और लिखना पसंद करते है। इन्होंने कई किताबें भी लिखी है। इस समय अध्ययन के साथ-साथ लेखन में भी सक्रिय है।