महागुरु विशोकानंद भारती जी के सान्निध्य में गुरुजनों का भव्य सम्मान

अजमेर। सनातन धर्म रक्षा संघ अजयमेरू राजस्थान, अंतर्राष्ट्रीय साहित्य परिषद, प्रथम–एक पहल और कला विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में गुरु सम्मान समारोह का भव्य आयोजन गुरुवार, 4 सितम्बर 2025 को प्रेम प्रकाश आश्रम, चौरसिया वास रोड, वैशाली नगर, अजमेर में अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इस ऐतिहासिक अवसर पर महानिर्वाणी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी विशोकानंद भारती जी महाराज की अध्यक्षता रही। महागुरु ने अपने करकमलों से गुरुजनों का सम्मान कर शिक्षा, संस्कार और आध्यात्मिक जीवन के महत्व को पुनः प्रतिष्ठित किया।

समारोह का शुभारंभ परंपरागत तिलक से हुआ, जिसे श्रीमती कृष्णा शर्मा ने संपन्न किया। इसके बाद विजय कुमार शर्मा ने उपर्णा और चंद्रभान प्रजापति ने मोतियों की माला अर्पित कर गुरु परंपरा का अभिनंदन किया। प्रारंभिक संचालन जज साहब द्वारा किया गया। तत्पश्चात आचार्य जी ने उपस्थित अतिथियों का माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया।

गुरु सम्मान समारोह का मुख्य संचालन विजय कुमार शर्मा ने किया। कार्यक्रम में सर्वप्रथम महिला शिक्षिकाओं को सम्मानित किया गया, उसके पश्चात पुरुष शिक्षकों को वरीयता क्रम से आदर अर्पित किया गया। इस अवसर पर सम्मानित होने वालों में अक्षय परिहार, दिनेश झांकल, लता मिश्रा, योगेश्वरी शर्मा, संजय जैन, मीना शर्मा, नरेश कुमार, राजेश व्यास, राजीव मिश्रा, राम भरोसी, रंजना शर्मा, सरला शर्मा, विद्या शास्त्री, ख्याति अरोड़ा, डॉ. अतुल दुबे, राजेश्वरी किशनानी, डॉ. रश्मि शर्मा, उर्वशी भगचंदानी, डॉ. गायत्री शर्मा, डॉ. दीपा थदानी, रमा शर्मा, राजेंद्र सरस्वत, प्रताप सिंह, डॉ. शारदा देवड़ा, पंकज शर्मा सहित अनेक शिक्षकगण शामिल रहे। इसके अतिरिक्त ज्ञान सारस्वत, कंवल प्रकाश किशनानी, चंद्रभान प्रजापति, गोपेश दुबे, नरोत्तम शर्मा, विजय कुमार शर्मा, कमल चारण और देवेंद्र त्रिपाठी को भी महागुरु ने विशेष रूप से माल्यार्पण कर सम्मानित किया।

अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में आचार्य महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी विशोकानंद भारती जी महाराज ने कहा कि गुरु ही जीवन का सच्चा दीपक है। शिक्षक केवल पढ़ाते हैं, परंतु गुरु आत्मा को जागृत कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा को केवल रोजगार और डिग्री तक सीमित कर दिया गया है, जबकि वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को मूल्य, आचरण और धर्म से जोड़ना है। गुरु का कार्य केवल ज्ञानार्जन तक सीमित नहीं है, बल्कि वह जीवन को साधना और साधुता की दिशा में प्रवाहित करता है। महागुरु ने शिक्षकों से आह्वान किया कि वे विद्यार्थियों में केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि संस्कार और जीवन दृष्टि भी उत्पन्न करें।

इस अवसर पर शिखा शर्मा, राजमल प्रजापति, हेमंत वर्मा और संजय कुमार ने अपनी सेवाओं द्वारा आयोजन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। गुरुजनों के इस सम्मान ने उन्हें ही नहीं, वरन् संपूर्ण समाज को गौरवान्वित किया और यह संदेश दिया कि शिक्षा और संस्कार ही समाज की सच्ची धरोहर हैं।

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